The best Side of Shodashi

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सोलह पंखड़ियों के कमल दल पर पद्दासन मुद्रा में बैठी विराजमान षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी मातृ स्वरूपा है तथा सभी पापों और दोषों से मुक्त करती हुई अपने भक्तों तथा साधकों को सोलह कलाओं से पूर्ण करती है, उन्हें पूर्ण सेवा प्रदान करती है। उनके हाथ में माला, अंकुश, धनुष और बाण साधकों को जीवन में सफलता और श्रेष्ठता प्रदान करते हैं। दायें हाथ में अंकुश इस बात को दर्शाता है कि जो व्यक्ति अपने कर्मदोषों से परेशान है, उन सभी कर्मों पर वह पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर उन्नति के पथ पर गतिशील हो और उसे जीवन में श्रेष्ठता, भव्यता, आत्मविश्वास प्राप्त हो। इसके आतिरिक्त शिष्य के जीवन में आने वाली प्रत्येक बाधा, शत्रु, बीमारी, गरीबी, अशक्ता सभी को दूर करने का प्रतीक उनके हाथ में धनुष-बाण है। वास्तव में मां देवी त्रिपुर सुन्दरी साधना पूर्णता प्राप्त करने की साधना है।

The graphic was carved from Kasti stone, a scarce reddish-black finely grained stone accustomed to vogue sacred pictures. It was brought from Chittagong in present working day Bangladesh.

आर्त-त्राण-परायणैररि-कुल-प्रध्वंसिभिः संवृतं

संहर्त्री सर्वभासां विलयनसमये स्वात्मनि स्वप्रकाशा

॥ इति श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरीवेदसारस्तवः सम्पूर्णः ॥

He was so powerful that he produced your complete globe his slave. Sage Narada then requested the Devas to conduct a yajna and within the fireplace with the yajna appeared Goddess Shodashi.

She will be the in the form of Tri energy of evolution, grooming and destruction. Overall universe is changing under her power and destroys in cataclysm and again get rebirth (Shodashi Mahavidya). By accomplishment of her I bought this position and consequently adoration of her is the best here 1.

She is depicted with a golden hue, embodying the radiance from the soaring Sunlight, and is commonly portrayed with a 3rd eye, indicating her knowledge and Perception.

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥

She is also called Tripura because all her hymns and mantras have three clusters of letters. Bhagwan Shiv is believed to be her consort.

हंसोऽहंमन्त्रराज्ञी हरिहयवरदा हादिमन्त्रार्थरूपा ।

The essence of such occasions lies from the unity and shared devotion they inspire, transcending specific worship to create a collective spiritual environment.

भर्त्री स्वानुप्रवेशाद्वियदनिलमुखैः पञ्चभूतैः स्वसृष्टैः ।

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१०॥

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